रविवार, 7 अप्रैल 2024

Intro: कश्मीर का सपना पूरा हुआ, कुछ इस तरह हुई तैयारी

घुमक्कड़ लोगों के लिए कोरोना किसी अभिशाप से कम नहीं था। कोविड काल के लंबे समय बाद तक घूमने या यूं कहिए स्वतंत्र रूप से घूमने पर कई पाबंदियां लगी हुई थी। 2022 आते-आते धीरे-धीरे सभी पाबंदियां खत्म होने लगी। उसके बाद हमने भी अपने घुमक्कड़ स्वभाव को दिए गए विराम को वापस लिया और पहाड़ पर जाने का निर्णय लिया। हमारे सामने दो विकल्प थे या तो हम नॉर्थईस्ट जाएं या फिर कश्मीर की तरफ रुख करें। 

चूंकि शुरू से ही मैं ऑफबीट डेस्टिनेशन को पसंद करता आया हूं इसलिए दोनों जगहों के बारे में रिसर्च शुरू की। नार्थ ईस्ट में नागालैंड और मणिपुर के बॉर्डर पर स्थित ज़ुकू वैली और कश्मीर की गुरेज वैली को शॉर्टलिस्ट किया गया।

कश्मीर की गुरेज घाटी

नागालैंड की जुकू वैली

इन दोनों डेस्टिनेशन के फाइनल हो जाने के बाद अब मैंने साथियों की तलाश शुरू की जिनके साथ यात्रा की जा सके। मुझे अकेले ट्रैवल करना पसंद नहीं है। हालांकि कई लोग सोलो ट्रैवलिंग की बात करते हैं लेकिन आज तक मुझे सोलो ट्रैवलिंग का कांसेप्ट समझ में नहीं आया। 

मेरा मानना है कि आप दुख में या खुशी में अपने आसपास लोगों को देखना चाहते हैं ठीक उसी तरह यात्रा में भी आप अपने आसपास अपनी फेवरेट लोगों को देखना ही चाहते हैं।

कई लोगों के प्लान में शामिल होने और एग्जिट करने के बाद आखिरकार हम 4 साथी तैयार हुए। हालंकि इस बीच अनेक लोग इस प्लान में शामिल हुए और सार्वभौमिक नियम की तरह अंत समय में प्लान कैंसिल कर गए।

अब क्योंकि यात्रा सिर्फ अपने पसंद से नहीं की जाती है इसलिए साथियों के पसंद को भी प्रेफरेंस दिया गया और अंत में कश्मीर के गुरेज घाटी को फाइनल किया गया। 4 साथी जिनमें सबसे पहला मेरा हमेशा से ट्रेवल का साथ ही रहा मेरा कजिन सैफ, उसका ही दोस्त शुभम और एक मेरे बचपन का दोस्त विकास जिसे हम सभी प्रेसिडेंट कहकर ही बुलाते हैं। हम चार लोगों की टोली तैयार हुई। 

तस्वीर मैं आप हम चारों साथियों को देख सकते हैं। बाएं से क्रमशः विकास, उसके बाद शुभम, उसके बगल में लाल टोपी पहने सैफ और आखिर में मैं यानी वलीउल्लाह।

जाने का समय हमने जुलाई में रखा था। मुझे मानसून में पहाड़ों पर जाने का शौक है। इस वक्त पहाड़ पर आपको चारों तरफ हरियाली ही हरियाली देखने को मिलती है जो आपको पहाड़ के सबसे खूबसूरत रूप को दिखाती है।

हालांकि मानसून के समय में पहाड़ों पर जाने के अपने नुकसान भी हैं, सबसे ज्यादा लैंडस्लाइड का खतरा होता है लेकिन फिर भी मुझे हरे-भरे पहाड़ ज्यादा आकर्षित करते हैं बारिश के बाद पूरी पहाड़ी हरी-भरी हो जाती है। 

हालांकि अगस्त में भी जाया जा सकता है लेकिन कश्मीर में स्वतंत्रता दिवस के आसपास काफी ज्यादा सिक्योरिटी सख्त होती है कई तरह के मूवमेंट पर रोक होती है इसलिए मैंने जुलाई में ही इस यात्रा को तय किया।

यात्रा गोरखपुर से शुरू हुई और गोरखपुर ही खत्म होने वाली थी। 22 जुलाई की रात में हमें गोरखपुर से निकलना था और 1 अगस्त को हमें वापस गोरखपुर पहुंच जाना था। 

शुरू से ही हमने तय किया था कि यात्रा को बिल्कुल बंजारों की तरह करेंगे और लोकल ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हुए लोकल लोगों की तरह यात्राएं करेंगे, लोकल यानी स्थानीय जायके का स्वाद चखेंगे। यानी यात्रा एकदम देसी स्टाइल में बजट यात्रा होने वाली थी।

पहले एक बार में आप लोगों को रूट बताना चाहता हूं जिससे कि आप समझ सके कि हमने यात्रा का प्लान किस तरह से किया था।

गोरखपुर > दिल्ली> उधमपुर> बनिहाल> श्रीनगर> गुरेज घाटी> तुलैल घाटी> श्रीनगर> जम्मू> गोरखपुर

हम लोगों को ज्यादातर यात्राएं ट्रेन से करनी थी। जो लोग कश्मीर गए हुए हैं उनको पता होगा लेकिन शायद बाकी लोगों के लिए या नई बात हो सकती है कि श्रीनगर तक ट्रेन चलती है। हालांकि बीच में उधमपुर से बनिहाल तक का रेलवे ट्रैक अभी कंप्लीट नहीं हुआ है इसलिए 93 किलोमीटर की यह यात्रा आपको छोटे बसों में या फिर टाटा सुमो से करनी होती है।

इस बीच हमें दिल्ली में ट्रेन चेंज करते हुए जाना पड़ा क्योंकि गोरखपुर से उधमपुर की डायरेक्ट ट्रेन सिर्फ एक थी और वह भी सुबह पहुंचाने की वजह शाम को उधमपुर पहुंचाती थी। 

शाम को उधमपुर पहुंचने का नुकसान यह था कि आप आगे की यात्रा रात में नहीं कर सकते हैं। आपको फिर उधमपुर में रुकना ही पड़ेगा। इसलिए हमने दिल्ली से उधमपुर की ट्रेन ली जिसने हमें सुबह-सुबह उधमपुर पहुंचा दिया और उसी दिन हम वहां से बनिहाल और फिर श्रीनगर की यात्रा कर सकें।

आगे के अंक में आप पढ़ेंगे कि किस तरह से हमारी यात्रा शुरू हुई और हम ने कश्मीर को किस तरह से दिखा।

क्रमशः

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